अब हम समझने का प्रयास करते हैं कि सीखने के प्रतिफल (LEARNING OUTCOMES) क्या है ?
विद्यालयों में अध्यनरत छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर कई नए प्रयास किये जाते है । इन सबका उद्देश्य विद्यालयी छात्रों में शैक्षिक गुणवत्ता का विकास और अच्छी उपलब्धि स्तर को हासिल करना होता है । जिससे छात्रों के समग्र मूल्यांकन के माध्यम से विकास की एक निश्चित योजना बनाकर उनका उन्नयन किया जा सके .वास्तव में, सीखना एक सतत व व्यापक जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है ।
सीखने के प्रतिफल (Learning Outcomes) क्या है ?
किसी विद्यार्थी के लिए पाठ्यक्रम में सीखने के जो लक्ष्य या दक्षतायें निर्धारित की जाती हैं तथा जिन्हें ध्यान में रखकर शिक्षक अपने दैनिक कक्षा शिक्षण को संपादित करते हैं और कक्षा के इतर अनेक सह शैक्षिक गतिविधियों को आयोजित करते हैं, उन्हें Learning outcomes कहते हैं।
LEARNING OUTCOMES पर अपनी अधिक समझ बनाने के लिए आप नीचे दिये गए link पर जा सकते हैं
वास्तव में, सीखना एक सतत व्यापक व जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है ।
सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक अभी तक पाठ्यक्रम पूरा कराने और परीक्षा के आयोजन पर ही ध्यान देते थे। पढ़ाई से बच्चे के मानसिक स्तर, सामान्य ज्ञान और शैक्षिक ज्ञान में क्या सुधार हुआ, इस पर ध्यान नहीं दिया जाता था। सरकार ने इस वर्ष पहल कर लर्निंग आउटकम के मापदंड तैयार किए हैं। किस कक्षा में शिक्षक बच्चे को किस तरह क्या-क्या पढ़ाएंगे और किस कक्षा में बच्चों को कितना ज्ञान होना चाहिए, यह निर्धारित किया गया है।
सीखने के प्रतिफल (LEARNING OUTCOMES) क्या है ?
अक्सर शिक्षकों में इस बात की स्पष्टता नहीं होती कि,
- किस प्रकार का सीखना आवश्यक है?
- वे कौन से मापदड हैं जिनसे इसे मापा जा सकता है?
वे पाठ्यपुस्तक को संपूर्ण पाठ्यक्रम मानकर पाठों के अत में दिए गए प्रश्नों के आधार पर मूल्यांकन करते हैं। पाठ्यसामग्री के संदर्भ की भिन्नताओ तथा पढ़ाने के विभिन्न सिद्धांतों को वे ध्यान में नहीं रखते। पठन सामग्री में संदर्भानुसार भिन्नताएँ और अपनाई गई शिक्षण तकनीक में विविधता पर सामान्यतया ध्यान नहीं जाता है, क्योंकि इनके आकलन की कोई कसौटी नहीं है।
प्रत्येक कक्षा के सीखने के प्रतिफल शिक्षकों को केवल शिक्षा के वांछित तरीके अपनाने में ही सहायक नहीं है. बल्कि अन्य साझेदारों, जैसे– संरक्षक, माता-पिता, विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्यों, समुदाय तथा राज्य स्तर के शिक्षा अधिकारियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने में उनकी भूमिका के प्रति सर्तक और ज़िम्मेदार भी बनाता है। स्पष्ट रूप से परिभाषित सीखने के प्रतिफल विभिन्न साझेदारों की ज़िम्मेदारी तथा उत्तरदायित्वों को सुनिश्चित करते हुए और दिशा-निर्देश दे सकता है ताकि विभिन्न पाठ्यचर्या क्षेत्र से अपेक्षाओं की पूर्ति हो सके। इसमें शिक्षक की प्राथमिक भूमिका सीखने की प्रक्रिया में सुगमकर्ता के रूप में होती है।
कक्षावार सीखने के प्रतिफल (Learning Outcomes) के स्तर पर अपनी अधिक समझ बनाने के लिए आप नीचे सारणी में दिये गए link पर जा सकते हैं
कक्षावार सीखने के प्रतिफल (Learning Outcomes)
कक्षा – पहली
हिंदी | अंग्रेजी | गणित |
कक्षा – दूसरी
हिंदी | अंग्रेजी | गणित |
कक्षा – तीसरी
हिंदी | अंग्रेजी | गणित | पर्यावरण |
कक्षा – चौथी
हिंदी | अंग्रेजी | गणित | पर्यावरण |
कक्षा – पाँचवी
हिंदी | अंग्रेजी | गणित | पर्यावरण |
कक्षा – छठवी
हिंदी | अंग्रेजी | गणित |
संस्कृत | विज्ञान | सा.विज्ञान |
कक्षा – सातवी
हिंदी | अंग्रेजी | गणित |
संस्कृत | विज्ञान | सा.विज्ञान |
कक्षा – आठवी
हिंदी | अंग्रेजी | गणित |
संस्कृत | विज्ञान | सा.विज्ञान |
एक शिक्षक की भूमिका –
बच्चे विद्यालय में अपने सीखने के अनुभवों के साथ प्रवेश करते हैं। विद्यालय बच्चे के मौजूदा अनूभवों के आधार पर सीखने की आगामी प्रक्रिया के गठन का दायित्व उठाता है। इस प्रकार हम किसी भी स्तर की शरुआत बच्चे की ‘अधिगम शून्यता’ से नहीं करते। एक शिक्षक, जो कि विद्यार्थियाें के सीखने का परामर्शदाता और सगुमकर्ता है, को भिन्न शिक्षणशास्त्रीय तकनीकों और बच्चेकी सीखने में उन्नति के प्रति भी जागरूक बनाना आवश्यक है।
सीखने के प्रतिफल को बेहतर कैसे बनायें –
सीखने सिखाने की प्रक्रिया के दौरान सतत एवं मूल्यांकन का उपयोग करें।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विद्यार्थी और शिक्षक के अलावा माता-पिता, समुदाय के सदस्य और शैक्षिक प्रशासकों को भी विद्यार्थियों के सीखने के बारे में जानने और उसके अनुसार बच्चों की सीखने संबंधी उन्नति पर नज़र बनाए रखने की ज़रूरत है।
सीखने की निरन्तरता को ध्यान में रखते हुए व्यवस्था को यह जानकारी देना कि बच्चेने सटीक रूप से क्या सीखा, एक चनुौती भरा कार्य होता है।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनसुंधान और प्रशिक्षण परिषद (ए्नसीईआरटी) के द्वारा विद्यालय से संबंधित सभी हितग्राहियों को शामिल करते हुए सीखने की संप्राप्तियों (Learning outcomes)को निर्धारित किया गया है ये बेंच मार्क के रूप में चिन्हित किये गए है क्योंकि इनकी प्राप्ति के बगैर छात्रों के सर्वागींण विकास की बात उचित नही है.
LEARNING OUTCOMES (सीखने के प्रतिफल) क्यों ?
- प्रत्येक कक्षा के विद्यार्थी के सीखने के बारे में जानने और उसके अनुसार बच्चों के सीखने सम्बन्धी प्रगति पर नज़र बनाये रखने की जरुरत है । इसके लिए आवश्यकता है की शिक्षको को कुछ मानदंड उपलब्ध करवाए जाये जिनकी सहायता से आपेक्षित सीखने के स्तर का आकलन किया जा सके।
- सीखने की निरन्तरता को ध्यान में रखते हुए शिक्षक एवं शिक्षा व्यवस्थासे जुड़े सभी अधिकारियो एवं अभिभावकों यह जानना आवश्यक है कि बच्चे ने सटीक रुप से कक्षा में क्या सीखा? इन्ही मापदंडो को “सीखने का प्रतिफल ” के रुप में परिभाषित किया गया है अर्थात जो कुछ भी बच्चे ने सीखाहै उसको जाचने अथवा उस परिणाम को देखने के मापदंड को अधिगम प्रतिफल के रुप में देखा जा सकता है ।
LEARNING OUTCOMES (सीखने के प्रतिफल) की आवश्यकता –
- निः शुल्क एवं बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 की क्रियान्वित अंतर्गत प्रत्येक विद्यार्थी की गुणवत्तायुक्त शिक्षा को सुनिश्चित करने हेतु ।
- आयु अनुररोप अपेक्षित स्तर , कौशल विकास एवं गुणवक्तायुक्त शिक्षा को परिभाषित करने हेतु ।
- शैक्षिक उदेश्यो की पूर्ति की सटीक जॉच हेतु ।
- राष्ट्रीय स्तर की शैक्षिक आकांक्षाओं की क्रियान्वयन हेतु समन्वित प्रयास अन्तर्गत ।
- राज्य को राष्ट्रीय स्तर पर उच्च पायदान पर अवस्थित करने के प्रयास के क्रम में ।
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एस. एस. पटेल , जो कि वर्तमान में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं . अभी आप Edu Depart में नि:शुल्क मुख्य संपादक के तौर पर अपनी सेवा दे रहे हैं .