Remedial Teaching उपचारात्मक शिक्षण 2023-24

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Remedial Teaching : राज्य में इस वर्ष उपचारात्मक शिक्षण कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों का तिमाही परीक्षा प्राप्तांक के आधार पर छात्रों का चिन्हांकन कर किया जाना है |

remedial teaching उपचारात्मक शिक्षण 2023

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उपचारात्मक शिक्षण निर्देश Open

शिक्षण या अधिगम की कठिनाइयों या त्रुटियों के कारण बच्चे कक्षा में पिछड़ जाते हैं, उपचारात्मक शिक्षण द्वारा उपयुक्त शिक्षण विधि का चयन करके उनकी कठिनाईयों को दूर करने का प्रयास किया जाता है। शिक्षा में कमज़ोर शिक्षार्थियों के शिक्षण अधिगम दोष प्रभावों को दूर करने की प्रक्रिया उपचारात्मक शिक्षण कहलाती है।

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  • उपचारात्मक शिक्षण के लिये सबसे पहले Slow Learners का चिन्हांकन करना होगा।
  • इसके चिन्हांकन के लिये त्रैमासिक परीक्षा का परिणाम को देखेंगे |
  • परीक्षा का परिणाम में न्यूनतम 25% प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों का उपचारात्मक शिक्षण करना है।
  • प्रतिदिन 30-40 मिनट अतिरिक्त शिक्षण का एक निश्चित समय निर्धारित करना है।
  • उपचारात्मक शिक्षण शिक्षण शाला अवधि में किया जाना है |
  • पालक-शिक्षक सम्मेलन (PTM) के माध्यम से कमजोर बच्चों के पालकों का सहयोग गृह कार्य को पूर्ण कराने में लिया जा सकता है।
  • शाला स्तर पर संस्था प्रमुख एवं शिक्षकों के द्वारा उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था छात्रों के स्तर को ध्यान में रखते हुए करना है।
  • कमजोर विद्यार्थियों को उत्कृष्ट विद्यार्थियों के साथ जोड़कर कमजोर विद्यार्थियों का स्तर उठाने का प्रयास करना है।
  • पूर्व वर्षों में राज्य द्वारा प्रदान की गई अभ्यास पुस्तिका का उपयोग उपचारात्मक शिक्षण में किया जा सकता है ।
  • अभ्यास पुस्तिका द्वारा उपचारात्मक शिक्षण के लिये अभ्यास कार्य दिया जा सकता है।
  • उपलब्धि स्तर के अनुरूप विषय विशेषज्ञ शिक्षकों द्वारा उपचारात्मक शिक्षण कराया जाएगा।
  • शालाओं में निक्लिर एवं टेलीप्रेक्टिस का उपयोग कराया जा सकता है।
  • इस हेतु ICT योजना के तहत शालाओं में बनाए गए कम्प्यूटर लेब / स्मार्ट क्लास का उपयोग उपचारात्मक शिक्षण के लिये किया जा सकता है।
  • विद्यार्थियों में सामाजिकता, मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यक्तित्व के निखार हेतु विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं जैसे- इमला लेखन, श्रुति लेखन, निबंध लेखन, भाषण, वाद-विवाद, हस्तलेख प्रतिस्पर्धा, संगीत एवं नाटक आदि कराते हुए उन्हें अभिव्यक्ति का अवसर भी दिया जा सकता है।
  • शिक्षण अधिगम सामग्री (TLM), कियाकलाप (ALM), गतिविधि आधारित अधिगम (Activity based learning) का उपयोग कर उपचारात्मक शिक्षण कराना है।
  • भूतपूर्व छात्रों, सेवानिवृत्त शिक्षकों, NGO’s, SMDC, SMC, स्वयंसेवी समूहों का सहयोग उपचारात्मक शिक्षण हेतु लिया जा सकता है।
  • Peer Group learning के माध्यम से उपचारात्मक शिक्षण किया जा सकता है।
  • विषय शिक्षकों द्वारा Slow Learners विद्यार्थियों के समूह बनाकर उन्हें गोद लेकर अध्यापन कार्य किया जा सकता है।
  • शाला स्तर पर उपचारात्मक शिक्षण हेतु चयनित छात्रों का नाम एक अलग पंजी में दर्ज करना होगा।
  • उपचारात्मक शिक्षण में अध्यापन करा रहे शिक्षकों का नाम भी अलग से पंजी में अंकित करना होगा।
  • पंजी में अंकित शिक्षकों के नाम के आधार पर आनरेरियम (मानदेय) दिया जा सकेगा।
  • उपचारात्मक शिक्षण का अभ्यास प्रश्न पत्र मिडलाइन एवं एण्डलाइन दिसम्बर एवं जनवरी माह में आयोजित किया जाएगा।
  • अतः उपरोक्तानुसार सुझाव एवं निर्देशानुसार उपचारात्मक शिक्षण हेतु आवश्यक तैयारी यथाशीघ्र प्रारंभ करें एवं शालावार / जिलावार संस्था इस कार्यालय को उपलब्ध करायें।

उपचारात्मक शिक्षण का उद्देश्य हैं छात्रों की त्रुटियों का निवारण। त्रुटियाँ किन कारणों से हो रही हैं सर्वप्रथम विवेक द्वारा पता लगाना चाहिए। अगर छात्र गुणा एवं भाग में ‘हासिल’ की भूल करता है तो कारण क्या है? इसे स्पष्ट करने के बाद ही निवारण संभव है। ऐसे समय छात्रो के साथ प्रेम एवं सहानुभूति का भाव रखना चाहिए। उन्हें प्रेरित एवं प्रोत्साहित करते रहना चाहिए। प्रोत्साहन से छात्रों में प्रेरणा आती है और बल मिलता है, जिससे वे अपेक्षित सुधार करते हैं। उपचारात्मक शिक्षण से छात्रो की कठिनाईयों को दूर किया जाता है एवं उनके द्वारा प्रगति प्रारंभ हो जाती है।

उपचारात्मक शिक्षण छात्रों को हीन भावना से बचाता है। वह उन्हें कुसामंजस्यता की होन भावना से मुक्त कर देता है। जब तक हीन भावना बनी रहेगी, छात्र प्रगति नहीं कर सकते। इसलिए उपचारात्मक शिक्षण में इस भावना को समाप्त किया जा सकता है। कभी-कभी देखा जाता हैं कि बुरी संगति के कारण भी छात्र अध्ययन में मन नहीं लगाते और पिछड़ने लगते हैं। ऐसी स्थिति में अध्यापक को बुरी संगति से मुक्ति दिलाने के लिए उपचारात्मक शिक्षण का सहारा लेना चाहिए और छात्रों को आदर्श पुरुषों के उदाहरण से एवं अच्छे छात्रों के सहयोग से लाभान्वित करना चाहिए इससे बालकों का अपेक्षित विकास होता है।

  1. विद्यार्थियों की अधिगम सम्बन्धी दुर्बलताओं व अक्षमताओं को समाप्त करना ।
  2. विद्यार्थियों की अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों एवं कमजोरियों को दूर करके उनको भविष्य में भी उन दोषों से दोषमुक्त करना ।
  3. विद्यार्थियों की दोषपूर्ण आदतों, कुशलताओं एवं मनोवृत्तियों को समाप्त करके उनको आदर्श एवं उत्तम रूप प्रदान करना ।
  4. विद्यार्थियों की अवांछनीय रुचियों, आदतों एवं दृष्टिकोणों को वांछनीय रुचियों, आदर्शों एवं दृष्टिकोणों में परिवर्तन करना।
  5. विद्यार्थियों के शिक्षण से प्रति रुचि उत्पन्न करना ।
  6. विद्यार्थियों में आत्मविश्वास को जन्म देना ।
  7. शिक्षण में मनोविज्ञान के सिद्धांत का प्रयोग करना
  8. छात्रों की व्यक्तिगत कठिनाइयों को दूर करना 

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