छत्तीसगढ़ को खेलों का गढ़ बनाने के पहल में शाला में खेलगढ़िया कार्यक्रम की भूमिका महत्वपूर्ण है। अब शाला में पढ़ाई के साथ-साथ खेलों को भी बहुत महत्व दिया जाना है। हमारे बच्चों के विकास के लिए खेल बहुत आवश्यक है ।
मोबाइल एवं वीडियो गेम्स के आने के बाद शहरों में बच्चे अपना पूरा समय इनमें व्यर्थ गंवाने लगे हैं । अब संचार क्रान्ति के विकास के कारण घर घर में मोबाइल मिलने लगा है और दुनिया अब छोटी होती जा रही है। हमें दुनिया भर की बढ़िया से बढ़िया जानकारी मोबाइल के माध्यम से मिलने लगी है । परन्तु यदि हम समय पर नहीं जागे तो इतनी अच्छी सुविधा का नुकसान भी हमें उठाना पड़ सकता है ।
शाम को या सुबह बच्चे अपने साथियों के साथ खेलते ही हैं, हम उन खेलों को उनकी बेहतरी के लिए करते हुए उनके शारीरिक विकास के साथ साथ चुस्त और तंदुरुस्त रहने एवं खेलों इंडिया जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों के लिए शुरू से ही ग्रामीण प्रतिभाओं की पहचान कर उन्हें तराशने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं ।
डंडा पचरंगा / गोबर डंडा
1. एक खिलाड़ी को दाम देना होता है, जो एक गोल घेरे में अपने डंडे को दोनों हाथों से ऊपर करके खड़ा होता है |
2. बाकी खिलाड़ी उस इंडे को उछालकर फिर मारते हुए दूर तक ले जाते हैं । इस दौरान अपने-अपने इंडे को पत्थर या गोबर में रखते जाते हैं।
3. अगर दाम देने वाला खिलाड़ी किसी और खिलाड़ी को छू लेता है, जब वह खिलाड़ी पत्थर या गोबर में अपना डंडा नही रखा होता है । तो छुवे गए खिलाड़ी को अगला दाम देना होता है |
4. दाम देने वाले खिलाड़ी को उसकी पारी खत्म होने पर अपने इंडे को सर पर रखकर वापस गोले तक आना होता है। अगर बीच में डंडा गिर जाये तो फिर वहीं से उसे ही दाम देना पड़ता है।
एम.एल. पटेल , जो कि वर्तमान में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं . अभी आप Edu Depart में लेखक के तौर के पर अपनी सेवा दे रहे हैं .