क्या है ये समावेशी शिक्षा ? आइये इसके बारे में जानें
समावेशी शिक्षा( Inclusive Education) का आशय
समावेशी शिक्षा ( Inclusive Education) का आशय सामान्य शालाओं में सामान्य बच्चों के साथ विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की अध्ययन व्यवस्था से है।
सामान्य छात्र – छात्रायें + विशेष आवश्यकता वाले बच्चें = समावेशी शिक्षा।
शिक्षा का समावेशीकरण यह बताता है कि विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक सामान्य छात्र और एक दिव्यांग को समान शिक्षा प्राप्ति के अवसर मिलने चाहिए। इसमें एक सामान्य छात्र एक दिव्याग छात्र के साथ विद्यालय में अधिकतर समय बिताता है। पहले समावेशी शिक्षा की परिकल्पना सिर्फ विशेष छात्रों के लिए की गई थी लेकिन आधुनिक काल में हर शिक्षक को इस सिद्धांत को विस्तृत दृष्टिकोण में अपनी कक्षा में व्यवहार में लाना चाहिए।
समावेशी शिक्षा का उद्देश्य:
● दिव्यांग बालकों की विशेष आवश्यकताओं को सर्वप्रथम पहचान करना तथा निर्ध्रारण करना।
● यह सुनिश्चित करना कि कोई भी बच्चा हो चाहे वह शारीरिक अपंग हो अपंगता से ग्रस्त हो फिर भी उसे शिक्षा के समान अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता है।
● शारीरिक रूप से विक्रितियुक्त बालकों की शिक्षण समस्याओं की जानकारी प्रदान करना।
● बालकों की असमर्थताओं का पता लगाकर उनको दूर करने का प्रयास करना।
● बच्चों में आत्मनिर्भर की भावना का विकास करना।
● विशिष्ट बच्चों को आत्मनिर्भर बना कर उनको समाज में मुख्यधारा से जोड़ना
● समाज में दिव्यांग अत संबंधी फैली बुराइयों को दूर करना
समावेशी शिक्षा की आवश्यकता
समावेशी शिक्षा समाज की एक अपरिहार्य आवश्यकता बन गयी है। वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास की दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह विविध प्रकार के विभेदन एवं असमानताओं के कारण हुई रिक्तियों को भरने में सहायक है।समावेशी शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है:-
- शिक्षा की सर्वव्यापकता – शिक्षा – विशेष रूप से प्राथमिक शिक्षा को तभी सार्वभौमिक बनाया जा सकता है यदि प्रत्येक बालक के गुणों, स्तर तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा का विस्तार किया जाए।
- संवैधानिक उत्तरदायित्व का निर्वहन – भारत एक प्रजातांत्रिक गणराज्य है । यहां शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है, जहां जाति, रंग-भेद, धर्म, लिंग भेद के लिए कोई स्थान नही है।
- राष्ट्र का विकास – देश मि खुशहाली एवं संगठन के लिए विकास एक अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता है, जिसमे सभी नागरिकों के योगदान की जरूरत होती है। यूनेस्को ने अपनी रिपोर्ट(2008) में यह कहा कि प्राथमिक शिक्षा के आशातीत विकास के बावजूद भी 72 मिलियन से अधिक निर्धनता एवम सामाजिक हासिए स्तर पर स्थित बच्चे किसी स्कूल में नामांकन नहीं ले रहे हैं।
- शिक्षा का स्तर बढ़ाना – समवेशी शिक्षा न केवल ‘सबके लिए शिक्षा’ बल्कि ‘ सबके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर आधारित है। इस शिक्षा प्रणाली में सभी बच्चों के दैहिक, मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के मूलभूत सिद्धान्त पर पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियों को लचीला बनाने पर विशेष बल दिया गया है। तो यह स्पष्ट है कि ऐसी शिक्षा प्रणाली से गुणात्मक शिक्षा का विकास होगा।
- सामाजिक समानता का उपयोग एवं प्राप्ति – सामाजिक समानता का पहला पाठ स्कूलों में पढ़ाया जाता है। समावेशी शिक्षा इस के लिए अत्यंत उपयुक्त स्थल है।
- समाज के विकास एवं सशक्तिकरण के लिए – समाज का विकास एवं सशक्तिकरण उसके सुयोग्य एवं शिक्षित नागरिको पर निर्भर करता है। समावेशी शिक्षा इस दिशा में एक दूरदर्शितापूर्ण उपयोगी प्रयास है।
- अच्छी नागरिकता के उत्तम गुणों का विकास
- व्यक्तिगत जीवन एवं विकास
- परिवार के लिए सांत्वना एवं संतोषपूर्ण प्रभाव
समावेशी शिक्षा का लक्ष्य
6 से 18 वर्ष के विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को शिक्षा के मुख्य धारा से जोड़कर नियमित शाला में सामान्य बच्चों के साथ सामान्य अध्ययन द्वारा कक्षा में समाविष्ट कर एक साथ सामान्य अवसर देकर,गुणवत्तायुक्त शिक्षा हेतु अवसर अवसर उपलब्ध कराना है।
समावेशी शिक्षा में चार प्रकियाएं
समावेशी शिक्षा में चार प्रकियाएं होती है-
1.मानकीकरण- सामान्यीकरण वह प्रक्रिया है जो प्रतिभाशाली बालकों तथा युवकों को जहाँ तक संभव हो कार्य सीखने के लिए सामन्य सामाजिक वातावरण पैदा करें।
2. संस्थारहित शिक्षा- संस्थारहित शिक्षा ऎसी प्रक्रिया है जिसमे अधिक से अधिक प्रतिभाशाली बालकों तथा युवक छात्राओं की सीमाओं को समाप्त कर देती है जो आवासीय विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं एवं उन्हें जनसाधारण के मध्य शिक्षा ग्रहण करने का अवसर प्रदान करते हैं।
3.शिक्षा की मुख्य धारा- शिक्षा की मुख्य धारा वह प्रक्रिया है जिनमे प्रतिभाशाली बालकों को समान्य बालकों के साथ दिन प्रतिदिन शिक्षा के माध्यम से आपस मे संबंध रखते हैं।
4.समावेश- समावेश वह प्रक्रिया है जो प्रतिभाशाली बालकों को प्रत्येक दशा में सामान्य शिक्षा कक्ष में उनकी शिक्षा के लिये लाती है । समन्वित पृथक्करण के विपरीत है ।
पृथक्करण वह प्रक्रिया है जिसमें समाज का विशिष्ट समुह अलग से पहचाना जाता है तथा धीरे धीरे सामाजिक तथा व्यक्तिगत दूरी उस समूह की तथा समाज की बढ़ती जाती है।
समावेशी शिक्षा की विशेषताएं
समावेशी शिक्षा प्रतिभाशाली, कमजोर, औसत हर वर्ग के बालकों के लिए है।
● समेकित शिक्षा में बालकों के मानसिक स्तर का खास तौर पे ध्यान रखा जाता है।
● जो छात्र सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पाते जैसे दिव्यांग छात्र, तो उनके लिए इसमें विशेष प्रकार की व्यवस्था होती है।
● छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का उदय हो जाता है खुद की दिव्यांगता पर दया जैसे भाव नही रहते। वे स्वयं को आम बालकों जैसा ही समझते हैं।
● यह अपंग बालकों को उनके व्यक्तिक अधिकारों के रूप में स्वीकार करता है।
● यह विशिष्ट बच्चों को आत्मनिर्भर बना कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ता है।
● समावेशी शिक्षा प्रत्येक बच्चों को व्यक्तिगत शक्तियों का विकास करती है।
● समावेशी शिक्षा सम्मान और अनेक अपनेपन की संस्कृति के साथ व्यक्तिगत मतभेदों को स्वीकार करने के लिए भी अवसर प्रदान करती है।
● यह प्रत्येक प्रकार तथा श्रेणी के बालकों में आत्मनिर्भरता की भावना का विकास करती है।
● समावेशी शिक्षा के बल विकलांग बच्चों तक नहीं है बल्कि इसका अर्थ किसी भी बच्चे का बहिष्कार ना करना होना है।
समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त
समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त इस प्रकार हैं-
➦ बालकों में एक सी अधिगम की प्रवृत्ति है अर्थात सबमे सीखने की एक जैसी आदतें हैं।
➦ बालकों को समान शिक्षा का अधिकार है। अर्थात समावेशी शिक्षा कमजोर, प्रतिभाशाली,अमीर गरीब, ऊंच नीच नही देखती है।
➦ सभी राज्यों का यह दायित्व है कि वह सभी वर्गों के लिए यथोचित संसाधन सामग्री धन तथा सभी संसाधन उठाकर स्कूलों के माध्यम से उनकी गुणवत्ता में सुधार करके आगे बढ़ाएं।
➦ शिक्षण में सभी वर्गों,शिक्षक, परिवार तथा समाज का दायित्व है कि समावेशी शिक्षा में अपेक्षित सहयोग करें।